Saturday 30 September 2017

कवि कवियों से .... "एक सफ़र " ----- "गौरव त्रिपाठी "

कवि कवियों से .... "एक सफ़र " ----- "गौरव त्रिपाठी "

                                                    ---- "गौरव त्रिपाठी"----

कवि  कवियों से .... "एक सफ़र "

‘मेरे मंदिर के लिए जब तुम थे रथ पर चढ़ रहे देश के एक कोने में थे कश्मीरी पंडित मर रहे।
फिर मेरी ही सौगंध खाकर काम ऐसा कर गए, मेरे लिए दंगे हुए मेरे ही बच्चे मर गए।’

गौरव त्रिपाठी कि  कलम से छाप  छोड़ती  ये पंक्तियाँ  आज अयोध्या का ही नहीं  समूचे भारत का आईना है | ग़ौरव  त्रिपाठी ने ये पंक्तियाँ तब लिखी जब देश में  बढ़ती हिंसक घटनाओं  ने उन्हें सोचने पर मज़बूर  कर दिया |

https://www.youtube.com/watch?v=uoX5kvTSwn4



देश में बढ़ रही हिंसक घटनाओं के बीच एक वीडियो आया है। वीडियो में  "गौरव त्रिपाठी" भारतीय इतिहास के विवादत मुद्दे राम मंदिर का जिक्र कर रहे  है। वीडियो का टाइटल है ‘श्री राम जी अदालत में।’ वीडियो में "गौरव त्रिपाठी" कहते  है कि अदालत में श्री राम को बुलाया जाता है और फिर वह अपनी तरफ से दलील देने लगते हैं। वीडियो में गौरव त्रिपाठी बताते है कि श्री राम को पहले इस बात पर गुस्सा आता है कि अल्लाह को समन जाने के बावजूद वहां नहीं आए। लेकिन फिर वह दोनों (हिंदू-मुसलमान) की तरफ से बोलने लगते हैं। वीडियो में वो यह भी जिक्र करते  है कि अदालत में श्री राम कहते हैं कि जब वह आज की परिस्थिति को देखते हैं तो उनको लगता है कि त्रेता युग में अवतार लेना बेकार रहा।  श्री राम के माध्यम से गौरव बताते हैं कि श्री राम ने  केवट और सबरी के जरिए भेदभाव को तोड़ा था और लोगों को समझाने के लिए उन्होंने सीता तक को छोड़ दिया था|

गौरव त्रिपाठी भाषा से धनि है और विचारों  को शब्दों में पिरोनी वाली कला को भली भाँती समझते है |श्री राम जी अदालत में’,कम्बलवाले भाई ,सेकंड हैंड जिंदिगी ,इट्स  आल मेन्टल ,आदि ये सभी उनकी शब्दकला और प्रस्तुति के जीते जागते उदहारण है |  गौरव त्रिपाठी न ही एक अच्छे लेख़क  है बल्कि उसके साथ एक बहुत ही अच्छे श्रोता और उम्दा पाठक भी हैं | कवियों के जीवन को पढ़ना , उनकी लिखी पंक्तियों की गहराई में उतरना व उनके विचारो की नीभ पर स्थिर खड़े रहना  ये सब उन्हें भली भाँती आता है|

समय के साथ शब्दों को हेर फेर करने का तरीका भी बदल चुका  है | श्रोताओं को कुछ हद तक ही शब्दकोष का ज्ञान है | भाषा उस बहती  हुई नदी की धारा  की तरह हो गयी है जिसे कभी गति भी थामनी पड़ती है कभी मुड़ना भी पड़ता है | इस बात को "गौरव त्रिपाठी " भली भाँती समझते है | इसका सीधा उदहारण इन त्रिपाठी जी की इन पंक्तियों में है :-

‘खैर अब भी है समय तुम भूल अपनी पाट दो, जन्मभूमि पर घर बनाओ और बेघरों में बांट दो। ऐसा करना हूं मैं कहता परम-पूज्य का काज है, न्याय-अहिंसा यही तो राम राज्य है।’

एक पैमाने पर पियूष मिश्रा जी और गौरव त्रिपाठी जी के लिखने व प्रस्तुति का तरीका हो सकता है कुछ हद तक भिन्न भिन्न हो किन्तु शब्दों  को रूचि में  ढालना और माध्यम  के बीच रखकर अपने विचारो को परोसने के तरीके में कुछ ज़्यादा  भिन्न्नता नहीं है| ग़ौरव  त्रिपाठी की अधिकतर कविताओं में  एक सरलता ,सहजता और गंभीरता नज़र आती है शायद ये उनके निजी जीवन से है चूँकि  वे एक एक्स  आर्मी अफसर भी रहे है तो किसी भी विषय में गंभीरता स्वाभाभिक है | उनकी कविताओं ,कहानियों को समझने के लिए अनुवाद या भावार्थ की जरूरत नहीं पड़ती है |



देश की सरहदों से प्रेम का जोड़ उनकी इस कविता में बखूबी नज़र आता है | कश्मीर जो की सुंदरता की मशाल है उसको शब्दों के लपेटकर गौरव जी ने बड़े ही सरलता से उसका हाल व्यक्त किया है | गौरव त्रिपाठी अपनी जिंदिगी में शब्दों के साथ यहाँ ही नहीं रुकते उनका सफर अनेक मुद्दों के साथ चल ही रहा है अब उनके शब्दों की आग और शोले बन  चुकी है और कविताओं के खामोश सफर में आने वाले वक़्त में उनके शब्द इस देश के जवान होंगे जो बंदूकों के साथ सोए  हुए कानों  में धमाके करेंगे कि  ए  राजनीती करने वालों संभल जाओ ,सुधर जाओ तुम्हारा अकाल मृत्यु निश्चित है | 

२१ वी  सदी को अब गौरव त्रिपाठी,पियूष मिश्रा जैसे कवियों की ही जरूरत है और आने वाले समय में कटघरे से जैसे अब श्री राम को निकलना पड़ेगा ,अल्लाह को जमीं  पे उतरना पड़ेगा और अब शब्दों के तीर से एक परचम फैलाना पड़ेगा कि  "न मैं अल्लाह न ये राम ,न मैं  मस्ज़िद  न मंदिर का विश्राम , हूँ तो बस  तेरे अंदर बैठा एक नाम ,और तू है इंसा आ इंसान के काम ,,"


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