Saturday 23 September 2017

कवि कवियों से .... "एक सफ़र " ----- " हरिवंश राय श्रीवास्तव "बच्चन""

कवि कवियों से .... "एक सफ़र " ----- " हरिवंश राय श्रीवास्तव "बच्चन""



                                               ---" हरिवंश राय श्रीवास्तव "बच्चन""---
 कवि  कवियों से .... "एक सफ़र "

वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी,
माँग मत, माँग मत, माँग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ !!

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तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ !!

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यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु श्वेत रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ !!

इन कविताओं की पंक्तियों को कोई और लिख भी नहीं सकता है | एक ही नाम ,एक ही कलम ,एक ही सोच रखने वाले वो महान इंसान जिसने कविताओं से रचना की परिभाषा ही बदल दी | जिस प्रकार जल की निर्मलता ,अग्नि का तेज़ ,वायु की तीव्रता इत्याति सबके अपने भिन्न भिन्न गुण  होते है ठीक इसके विपरीत वो अनंत तक जाने वाली सोच जिसे अग्नि में निर्मलता और जल में तेज़ नज़र आता है वो महान कवि स्वर्गवासी हरिवंश राय श्रीवास्तव "बच्चन" जी ही हो सकते थे |

हरिवंश राय श्रीवास्तव "बच्चन" (२७ नवम्बर १९०७ – १८ जनवरी २००३) हिन्दी भाषा के एक कवि और लेखक थे।'हालावाद' के प्रवर्तक बच्चन जी हिन्दी कविता के उत्तर छायावाद काल के प्रमुख कवियों मे से एक हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति मधुशाला है। भारतीय फिल्म उद्योग के प्रख्यात अभिनेता अमिताभ बच्चन उनके सुपुत्र हैं।

उन्होने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन किया। बाद में भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ रहे। अनन्तर राज्य सभा के मनोनीत सदस्य। बच्चन जी की गिनती हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में होती है।

बच्चन का जन्म 27 नवम्बर 1907 को इलाहाबाद से सटे प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे से गाँव बाबूपट्टी में एक कायस्थ परिवार मे हुआ था। इनके पिता का नाम प्रताप नारायण श्रीवास्तव तथा माता का नाम सरस्वती देवी था।

इनको बाल्यकाल में 'बच्चन' कहा जाता था जिसका शाब्दिक अर्थ 'बच्चा' या 'संतान' होता है। बाद में ये इसी नाम से मशहूर हुए। इन्होंने कायस्थ पाठशाला में पहले उर्दू की शिक्षा ली जो उस समय कानून की डिग्री के लिए पहला कदम माना जाता था। उन्होने प्रयाग विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम. ए. और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य के विख्यात कवि डब्लू बी यीट्स की कविताओं पर शोध कर पीएच. डी. पूरी की

१९२६ में १९ वर्ष की उम्र में उनका विवाह श्यामा बच्चन से हुआ जो उस समय १४ वर्ष की थीं। लेकिन १९३६ में श्यामा की टीबी के कारण मृत्यु हो गई। पांच साल बाद १९४१ में बच्चन ने एक पंजाबन तेजी सूरी से विवाह किया जो रंगमंच तथा गायन से जुड़ी हुई थीं। इसी समय उन्होंने 'नीड़ का पुनर्निर्माण' जैसे कविताओं की रचना की। तेजी बच्चन से अमिताभ तथा अजिताभ दो पुत्र हुए। अमिताभ बच्चन एक प्रसिद्ध अभिनेता हैं। तेजी बच्चन ने हरिवंश राय बच्चन द्वारा शेक्सपियर के अनूदित कई नाटकों में अभिनय का काम किया है।


उनकी कृति दो चट्टाने को १९६८ में हिन्दी कविता का साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसी वर्ष उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार तथा एफ्रो एशियाई सम्मेलन के कमल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। बिड़ला फाउण्डेशन ने उनकी आत्मकथा के लिये उन्हें सरस्वती सम्मान दिया था। बच्चन को भारत सरकार द्वारा १९७६ में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।

हरिवंश राय बच्चन पर अनेक पुस्तकें लिखी गई हैं। इनमें उनपर हुए शोध, परिचय, आलोचना एवं रचनावली शामिल हैं।

बच्चन रचनावली के नौ खण्ड जो १९८३ में प्रकाशित हुई थी  | हरिवंशराय बच्चन के मुख्य जीवन का  आगाज़ उनकी कविता "मधुशाला" से हुई जहाँ उन्होंने कविताओं को एक माला के रूप में पिरोया है और जिसे अनगिनित लोगो ने सराहा है |

हरिवंश राय श्रीवास्तव "बच्चन" के चाहने  वालों की कमी नहीं है आज के समय में भी एक महफ़िल ऐसी नहीं जाती  जहाँ हरिवंश राय जी को याद न किया जाता हो उनकी कविताओं के बोल आज भी अमर है | हरिवंश राय श्रीवास्तव "बच्चन" की कलम को आवाज़ उनके पुत्र फिल्म जगह के महानायक " अमिताभ बच्चन " ने दी है | जब कभी उन्हें अवसर मिलता है वे अपने स्वर्गवासी पिता की स्मृति में उनकी लिखी हुई पंक्तियाँ अवश्य कहते है | उनकी कविता प्रेरणा देने वाली होती है |

नीड़ का निर्माण फिर-फिर,वह उठी आँधी कि नभ मेंछा गया सहसा अँधेरा,धूलि धूसर बादलों नेभूमि को इस भाँति घेरा,रात-सा दिन हो गया, फिररात आ‌ई और काली,लग रहा था अब न होगाइस निशा का फिर सवेरा,रात के उत्पात-भय सेभीत जन-जन, भीत कण-कणकिंतु प्राची से उषा कीमोहिनी मुस्कान फिर-फिर!

जैसी अनेक कविताएँ है जिसकी गूंज आज भी नई  सी है और इन सभी के साथ आज भी उन पंक्तियों में वही उमंग है | उनके पाठक आज भी उन कविताओं को पड़के खुद को हरिवंशराय बच्चन के बहुत निकट पाते है | उनकी पंक्तियाँ जीवित कर देती है आत्मा का खुद के जीवन से मिलना श्री हरिवंशराय बच्चन जी की कविताओं से सा हो जाता है

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