Wednesday 20 September 2017

कवि कवियों से .... "एक सफ़र " ----- "अमृता प्रीतम "

कवि कवियों से .... "एक सफ़र " ----- "अमृता प्रीतम "

                                             ---अमृता प्रीतम---
कवि  कवियों से .... "एक सफ़र "


अमृता प्रीतम (१९१९-२००५) पंजाबी के सबसे लोकप्रिय लेखकों में से एक थी। पंजाब (भारत) के गुजराँवाला जिले में पैदा हुईं अमृता प्रीतम को पंजाबी भाषा की पहली कवयित्री माना जाता है। उन्होंने कुल मिलाकर लगभग १०० पुस्तकें लिखी हैं जिनमें उनकी चर्चित आत्मकथा 'रसीदी टिकट' भी शामिल है। अमृता प्रीतम उन साहित्यकारों में थीं जिनकी कृतियों का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ। अपने अंतिम दिनों में अमृता प्रीतम को भारत का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान पद्मविभूषण भी प्राप्त हुआ। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से पहले ही अलंकृत किया जा चुका था।

अमृता प्रीतम का जन्म १९१९ में गुजरांवाला पंजाब (भारत) में हुआ। बचपन बीता लाहौर में, शिक्षा भी वहीं हुई। किशोरावस्था से लिखना शुरू किया: कविता, कहानी और निबंध। प्रकाशित पुस्तकें पचास से अधिक। महत्त्वपूर्ण रचनाएं अनेक देशी विदेशी भाषाओं में अनूदित।

१९५७ में साहित्य अकादमी पुरस्कार, १९५८ में पंजाब सरकार के भाषा विभाग द्वारा पुरस्कृत, १९८८ में बल्गारिया वैरोव पुरस्कार;(अन्तर्राष्ट्रीय) और १९८२ में भारत के सर्वोच्च साहित्त्यिक पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित। उन्हें अपनी पंजाबी कविता अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ के लिए बहुत प्रसिद्धी प्राप्त हुई। इस कविता में भारत विभाजन के समय पंजाब में हुई भयानक घटनाओं का अत्यंत दुखद वर्णन है और यह भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में सराही गयी।

पंजाबी के शीर्षस्थ रजनाकार अमृता प्रीतम की कविताओं ने न केवल हिंदी बल्कि अन्य भारतीय और विदेशी भाषाओँ के पाठकों के बीच पर्याप्त  लोकप्रियता अर्जित की है |
उनकी कविताओं में जीवन के छोटे छोटे अनुभवों को जितनी आत्मयीता  और लगाव के साथ ग्रहण किया गया है ,वह निश्चय ही उनके रचनाकार की महती उपलब्धि है | समुद्र के समान  हिलोरें  खाती विराट जिजीविषा ने अमृता प्रीतम की कविताओं को गहरे लौकिक सन्दर्भ प्रदान किये है | रंग बिरंगी प्रकृति और मानवीय भावनाओं  के रागात्मक टकराव से उद्भूत उनकी कल्पनाशक्ति को राजनात्मकता की नई ऊँचाइयाँ  हासिल की है | स्मृतियों के नीले आकाश में घुमड़ते बादल सी इन कविताओं में नारी की मुक्ति -आकांक्षाओं और उनकी संघर्ष की बड़ी मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है |




अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ कित्थों क़बरां विच्चों बोल
ते अज्ज किताब-ए-इश्क़ दा कोई अगला वरका फोल
इक रोई सी धी पंजाब दी तू लिख-लिख मारे वैन
अज्ज लक्खां धीयाँ रोंदियाँ तैनू वारिस शाह नु कैन
उठ दर्दमंदां देआ दर्देया उठ तक्क अपना पंजाब
अज्ज बेले लाशां बिछियाँ ते लहू दी भरी चनाब

हिंदी अनुवाद

आज मैं वारिस शाह से कहती हूँ, अपनी क़ब्र से बोल,
और इश्क़ की किताब का कोई नया पन्ना खोल,
पंजाब की एक ही बेटी (हीर) के रोने पर तूने पूरी गाथा लिख डाली थी,
देख, आज पंजाब की लाखों रोती बेटियाँ तुझे बुला रहीं हैं,
उठ! दर्दमंदों को आवाज़ देने वाले! और अपना पंजाब देख,
खेतों में लाशें बिछी हुईं हैं और चेनाब लहू से भरी बहती है

अमृता प्रीतम का प्रतिनिधि कविताओं का संग्रह पंजाबी और हिंदी कवितों के बीच रचनात्मक संवाद का जीवंत वाहक सिद्ध होगा | इन पंक्तियों में अमृता प्रीतम वारिस शाह से बड़ी ही ख़ूबसूरती और नरम मिज़ाज़ से सन्देश दे रही है कि  हे वारिस शाह अपनी कब्र से तू बोल और कोई मोहोब्बत का नया पन्ना खोल पंजाब के पिंड की एक बेटी के अश्रुपूर्ण हो जाने पर तूने गाथा लिख डाली थी लेकिन देख आज तो पंजाब की लाखों बेटियां अश्क़ों में डूबी हुई है | पंजाब के खेतों  में लाशें बिछी हुई है |

अमृता प्रीतम का दर्द बयान करने का अंदाज़ भी स्थिर एक भावनात्मकता के साथ एक पगडण्डी पर धीरे धीरे बढ़ता हुआ नज़र आता है | प्रतीत होता है मानो वो कही स्थिर रूप से पंजाब के पिण्ड  में उस दर्द के साथ बंधी हुई है जहाँ  से निकल पाना अत्यधिक  कठिन है अपितु अमृता प्रीतम वही उन अश्क़ों को पोंछती हुई बैठ गई  है और उस जगह का हाल बयां  कर रही है उनकी कविता में भावना इस बात को दर्शाती है की उनकी कविताएं कितनी सच्ची है |

यह आग की बात है
तूने यह बात सुनाई है
यह ज़िंदगी की वो ही सिगरेट है
जो तूने कभी सुलगाई थी'
ये पंक्तियां हैं अमृता प्रीतम की लिखी कविता सिगरेट की। जिन लोगों ने अमृता को पढ़ा है, जाना है वो ये बात बखूबी जानते हैं कि अमृता की ये कविता किस ओर इशारा करती है। दरअसल अमृता प्रीतम की ये कविता मशहूर शायर, गीतकार साहिर लुधयानवी से उनकी जुदाई का किस्सा है। ये उस कहानी का ब्योरा है जिसमें अमृता साहिर से मीलों दूर रह कर भी अपनी अंतिम सांस तक प्यार करती रहीं। ये प्यार आसमान और जमीन के मिलन की कहानी है जो शायद कभी संभव न हुआ लेकिन जब-जब स्याही से पेपर पर अमृता लिखा जा रहा होगा स्याही कागज के पन्ने पर फैल कर खुद ब खुद साहिर लिख देगी। अमृता प्रीतम के जीवन का जिक्र हो और इस जिक्र में इमरोज का जिक्र न हो यह एक बेहद ही बेमानी बात होगी लेकिन मेरे लिए ये हमेशा से ही साहिर और अमृता की कहानी रही।
कहानी शुरू होती है सीमा के उस पार के शहर लाहौर से जहां अमृता का जन्म आज से 98 साल पहले हुआ था। जहां उम्र की दहलीज में जवां होने का ठप्पा लगने के बाद अक्सर दोनों मिला करते थे। शायद दोनों प्रेम में थे। 'शायद' इसलिए क्योंकि वक्त बीतने के बाद जोड़े में नामों के हर्फ भी बदल गए। जिस अमृता के साथ साहिर का नाम लिया जाता था वो नाम बदलकर इमरोज हो गया। लेकिन इससे पहले की कहानी जानना ज्यादा जरूरी है वरना भटक सकते हैं और भटकना खतरनाक हो सकता है। दोनों के बीच के प्रेम को बेपनाह मोहब्बत का नाम दिया गया।
प्रेम में सिगरेट की लत...

अपनी जीवनी रशीदी टिकट में अमृता एक दौर का जिक्र करते हुए बताती हैं कि किस तरह साहिर लाहौर में उनके घर आया करते थे और एक के बाद एक सिगरेट पिया करते थे। लेकिन बाद मुद्दत बात यहीं खत्म नहीं होती। अमृता को लत थी, सिगरेट की नहीं साहिर की और साहिर का चले जाना नाकाबिल-ए-बर्दाश्त। दरअसल जहां से प्रेम को परवान की जरूरत होती है वहां जुदाई को जगह नहीं मिलती।

अमृता के लिए साहिर से प्रेम इस कदर परवान चढ़ चुका था कि साहिर के जाने के बाद वो उनके पिए सिगरेट की बटों को जमा करती थीं और उन्हें एक के बाद एक अपने होठों से लगा कर वो साहिर को महसूस करती थीं। ये वो आदत थी जिसने अमृता को सिगरेट तक की लत लगा दी। अब वक्त करवट लेने वाला था साहिर को जाना था लेकिन सिगरेट ने जीवन में जगह बना ली थी।  इस तरह अमृता को सिगरेट पीने की लत लग गई जो आजीवन बरकरार रही।
एक वक्त के बाद साहिर मुंबई आ गए और अमृता पीछे छूट गईं लेकिन दोनों के दिल से एक दूसरे के लिए प्यार खत्म नहीं हुआ था।

 दोनों अक्सर खतों में एक दूसरे से मिला करते थे लेकिन खत कभी पूरे नहीं हुए हैं। साहिर और अमृता के प्रेम का एक और किस्सा बेहद ही मशहूर है जो साहिर के हिस्से से आती है। किस्सा है तो सुन लेना बेहतर शायद इनमें सच-झूठ से परे पीढ़ियों तक जाने का हुनर होता है।

वो चाय का कप...
एक बार की बात है साहिर से मिलने कोई कवि या मशहूर शायर आए हुए थे। उन्होंने देखा साहिर की टेबल पर एक कप रखा है जो गंदा पड़ गया है। उन्होंने साहिर से कहा कि आप ने ये क्यों रख रखा है? और इतना कहते हुए उन्होंने कप को उठा कर डस्टबीन में डालने के लिए हाथ बढाया कि तभी साहिर ने उन्हें तेज आवाज में चेताया कि ये अमृता की चाय पी हुई कप है इसे फेंकने की गलती न करें। लेकिन वो प्रेम सीगरेट की लत और चाय की कप तक ही सीमित रह गया, अभी जीवन में इमरोज का आना बाकी था। इमरोज! एक चित्रकार, जिसने प्रेम को नई परिभाषा दी। शायद यह काम भी एक कलाकार ही कर सकता था। जिसने हिन्दुस्तान को निःस्वार्थ प्रेम की परिकल्पना सिखाई लेकिन वो इश्क भी पूरा न हुआ।
इमरोज- एक छत...
हां एक बात हुई, दोनों ने दिल्ली में एक ही छत के नीचे जीवन काट दिया। इमरोज को अमृता ने छत कहा था लेकिन साहिर ने तो पूरा आसमान ही अपने नाम कर लिया था। अब आसमान के आगे छत की तुलना ये कैसा इंसाफ सो उस हिस्से का जिक्र इस कहानी में बेमानी होगी।

लेकिन एक किस्सा है जो न बताया जाए तो ये पूरा लिखा अधूरा ही रह जाएगा। शायद एक खत की तरह। इमरोज अमृता के जीवन का साया हो गए थे बावजूद इसके कि न कभी अमृता ने और न हीं कभी इमरोज ने एक दूसरे से प्रेम का इजहार किया था। इमरोज अमृता को जगह-जगह स्कूटर पर बैठा कर घूमने ले जाते थे और इस दौरान अमृता लगातार इमरोज की पीठ पर अपनी अंगुलियों से हर्फ दर हर्फ कुछ लिखा करती थीं और इमरोज को ये बात मालूम थी कि पीठ पर बार-बार साहिर लिखा जा रहा होता है। शायद इमरोज ने भी ये मान लिया था कि वो साहिर नाम के आसमान के नीचे बनी छत हैं।

अमृता के जीवन का आखिरी समय बहुत तकलीफ और दर्द में बीता था। बाथरूम में गिर जाने से उनके कूल्हे की हड्डी टूट गई थी और  उसके बाद मिले दर्द ने उन्हें कभी नहीं छोड़ा। इस दौरान इमरोज ने अमृता की सेवा में खुद को झोंक दिया था न जाने कितने ही काम के ऑफर तक ठुकरा दिए। इमरोज इस दौरान उन्हें नहलाने, कपड़े बदलने से लेकर सब काम में मदद करते थे। वो उनसे बातें करते, उन पर कविताएं लिखते, उनकी पसंद के फूल लाकर देते। 31 अक्टूबर 2005 को अमृता ने आखिरी सांस ली लेकिन इमरोज कहते हैं कि अमृता आज भी उनके साथ हैं, उनके बिल्कुल करीब।

इमरोज कहते थे, "उसने जिस्म छोड़ा है साथ नहीं। वो अब भी मिलती है कभी तारों की छांव में, कभी बादलों की छांव में,, कभी किरणों की रोशनी में, कभी ख़्यालों के उजाले में, हम उसी तरह मिलकर चलते हैं चुपचाप हमें चलते हुए देखकर फूल हमें बुला लेते हैं हम फूलों के घेरे में बैठकर एक-दूसरे को अपना-अपना कलाम सुनाते हैं उसने जिस्म छोड़ा है साथ नहीं...''
आखिर में साहिर की पंक्तियों के साथ अमृता प्रीतम को उनके जन्मदिन पर याद करने के लिए-

'जान-ए-तन्हा पे गुज़र जाएँ हज़ारों सदमे
आँख से अश्क रवाँ हों ये ज़रूरी तो नहीं'
शायद अमृता के लिए ही लिखा गया होगा।

1 comment:

  1. It's something great.. something different.. poetry is a world of peace and love..

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